शांकर गीता-प्रस्तावना-भाष्यके अनुसार-वेदोक्त धर्म दो प्रकार का है- एक
प्रवृत्ति
रूप (कर्मयोग) और दूसरा निवृत्ति रूप (ज्ञान योग), जो जगत् की
स्थिति का कारण तथा
मनुष्यों की उन्नति और मोक्ष का साक्षात् हेतु है। मनुष्य उपरोक्त तथ्य का संज्ञान
लेकर तथा स्वयं को किसी एक का अधिकारी जानकर तद्नुसार साधना करके जीवन के परम
लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। लोकमान्य श्री बालगंगाधर तिलक ने अपनी पुस्तक
श्रीमद् भगवत् गीता रहस्य (कर्मयोग शास्त्र) में लिखा है- ‘गीता का
प्रतिपाद्य विषय
प्रवृत्ति प्रधान है।’ अर्थात इस कलिकाल में कतिपय विवेक-प्रधान,
ज्ञान-योगी साधकों
को छोड़ दें, तो शेष मानव-समाज, भक्ति-प्रधान, कर्मयोग की साधना का अधिकारी है।
‘कर्म प्रधान विष्व रचि राखा, जो जस करहिं सो तस फल चाखा।’ अतः मानस के इस
ज्ञान को
चरितार्थ करते हुए अपने कर्मों में रत वर्णाश्रमावलम्बी मृत्यु के उपरान्त परलोक
में कर्मों का फल भोगकर बचे हुए कर्म-फल के अनुसार श्रेष्ठ देश, काल, योनि, कुल,
धर्म, आयु, विद्या, आचार, धन और मेधा से युक्त जन्म ग्रहण करते हैं (स्मृति वचन,
शांकर भाष्य, -गीता-18.44)।
स्वामी विवेकानन्द की पुस्तक ‘कर्मयोग’ में सेवा के विषय में
उल्लिखित (लिखा हुआ)
है कि आध्यात्मिक ज्ञान देना श्रेष्ठ सेवा है, पैरो पर खड़ाकर देना अर्थात्
स्वावलम्बी बना देना उत्तम सेवा है और भोजन, जल, वस्त्र आदि प्रदान करना मध्यम सेवा
है। यह ट्रस्ट सेवा के रूप में अपने-अपने विहित कार्यों में व्यस्त बन्धुओंको
आध्यात्मिक ज्ञान के प्रकाश में कर्मों का सम्पादन करने की उत्कण्ठा जगाने के प्रति
कृत-संकल्प है।
ट्रस्ट का उद्देश्य गतिशील होने के कारण सतत् प्रयास अपेक्षित है। इस तथ्य का
संज्ञान लेकर 18 से 23 वर्ष के छात्रों के लिये एक पृथक श्रेणी का प्रावधान किया
गया है। इस घोर कलिकाल में न केवल वे ही छात्र अपित ु उनकी भावी संतति (पीढ़ी) भी इस
उद्देश्य के प्रति अनवरत प्रयास में सहभागी बन कर समाज के साथ अपना भी कल्याण
करेगी, ऐसी आशा और अपेक्षा है।
ज्ञानी मनीषियों तथा महापुरुषों द्वारा प्रतिपादित युक्ति-युक्त गीता ग्रन्थ पर
भाष्यों, टीकाओं आदि की स्वाध्याय, मनन और चिन्तन जन्य समझ को स्पष्ट करने में
सहयोग प्रदान करने हेतु ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित ‘माँ गीता प्रसाद’ नामक
पुस्तक का
विमोचन वृन्दावन में किया जायेगा। इस पुस्तक में गीता के आधारभूत मूल बिन्दुओं तथा
स्वधर्म, स्वभाव, माँ गीता, सृष्टि-पुष्टि संहार, आत्मा-जीवात्मा-परमात्मा, कर्मयोग
दर्शन, गीता मर्म, गीता माहात्म्य आदि को प्रकरण रूप में प्रस्तुत किया गया है।
विश्व के ख्याति-लब्ध विद्वानों द्वारा विरचित ‘श्रीमद् भगवत् गीता’ के
भाष्य, टीका
आदि श्रेष्ठ ग्रंथों का पुस्तकालय, वाचनालय तथा ध्यान केन्द्र का उद्घाटन
दिनांक 10
अक्टूबर 2024 (सायंकाल) कार्यालय, वृन्दावन में किया गया पुस्तक-विमोचन का
कार्य
वित्तीय वर्ष 2024-25 के वार्षिक आम बैठक (।ळड) के साथ वृन्दावन में प्रस्तावित
(फरवरी-मार्च 2025) है, जिसकी सूचना, (तिथि समय, स्थान तथा कार्यसूची आदि) सभी
सदस्यों को एक माह पूर्व दे दी जायेगी।
यह इस ट्रस्ट का परम् सौभाग्य है कि विद्वतवरेण्यवर गीता ज्ञानी श्री महेष
चन्द्र
शर्मा जी ने हमारे साग्रह अनुरोध पर कृपा पूर्वक ट्रस्ट का संरक्षक बनना
स्वीकार कर
लिया है।